कुंडली में पितृ दोष के लक्षण, प्रभाव और उपाय
Effects and Remedies of Pitra Dosh
आज के इस लेख में पितृदोष के बारे में जानेंगे। हिन्दू धर्म के अनुसार कुंडली में पितृदोष की बहुत ज्यादा वास्तविकता बताई गयी हैं। जैसे की दक्षिण–पश्चिम दिशा में पृथ्वी की ऊर्जा होती है। इस दिशा में पेड़ पौधे हो या दीवार का रंग हरा हो तो भी पृथ्वी की ऊर्जा समाप्त हो जाती है। क्योंकि दक्षिण-पश्चिम दिशा ही घर का ऐसा कोना है जहां पर अला-वला, भूत-प्रेत, किया-कराया और पितृ वास करते हैं। जिसमें कि वहां पर वास्तु दोष उत्पन्न तो होता ही है। साथ में वहां पर पितृदोष का भी संकेत माना गया है।
अब हम देखते हैं कि कुंडली में पितृ दोष कैसे देखें। इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? इसके लिए किसे ग्रह माना गया है? यदि परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के पश्चात उसका भली प्रकार से अंतिम संस्कार संपन्न ना किया जाए अथवा उनका अंतिम संस्कार सही ढंग से ना किया जाए तो उनकी आत्मा अपने घर ओर आगामी पीड़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती हैं। या कोई पुत्र, अपने पिता से अनुपयुक्त बाते करके दिल दुखा के या जीवन को कष्टप्रद बना कर अपने पिता की मृत्यु का कारण बनता हैं, ओर उनका अंतिम संस्कार भी ढंग से नही करता है, ऐसी स्थिति में, तो स्वर्गीय पूर्वजो की अतृप्त आत्मा कष्ट देती ही हैं। वह अतृप्त आत्मा, ये सब अपनी इच्छा पूरी कराने के लिए करती हैं। यह दोष जातक की कुंडली में पितृ दोष बनाता है।
पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से तरह के कष्ट उठाने पड़ते हैं। इसमें विवाह ना होने की समस्या, विवाहित जीवन में परेशानी होना, परीक्षा में पास नहीं होना, नशे का आदी हो जाना, नौकरी न लगना या फिर नौकरी लग कर बार बार छूट जाना, बार बार गर्भपात होना या गर्भधारण करने में समस्या आना, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर बच्चे का मंदबुद्धि होना, महत्वपूर्ण विषयों में सही निर्णय ना ले पाना, अत्यधिक क्रोध का होना आदि आदि, ये सब लक्षण पितृदोष के माने जाते हैं।
पितृ दोष का एक ज्योतिषीय कारण भी है। लग्न और पंचम भाग में सूर्य, मंगल या शनि का होना और अष्टम या द्वादश भाव में राहु या बृहस्पति के होने से पितृदोष बनता है। पितृ दोष होने के कारण संतान होने में बाधा होती है।
पितृदोष के लिए 2, 8, 10 और 12 ग्रह देखे जाते हैं। आठवें भाव में या बारहवें भाव का संबंध सूर्य या बृहस्पति से हो तो पितृ दोष होता है। इसके अलावा सूर्य, चंद्र, राहु और केतु का संबंध हो तो भी पितृ दोष होता है। राहु और केतु का संबंध पंचम भाव में हो तो पितृ दोष बनता है।
पित्र दोष का निवारण अमावस्या को श्राद्ध, पितृपक्ष में 7 ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए। बृहस्पतिवार के दिन शाम को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और 7 बार उसकी परिक्रमा करने से जातक को पितृदोष से राहत मिलती है। और इसके अलावा सूर्य को जल भी चढ़ाना चाहिए। पूर्वजों से आशीर्वाद लेना चाहिए। गाय को गुड़ खिलाना चाहिए। ब्राह्मणों का आशीर्वाद लेना चाहिए। इससे पितृदोष में राहत मिलती है।
संतान संबंधी समस्याओं, कैरियर, स्वभाव, दुर्भाग्य आदि समस्याओं के मूल मे यदि पितृदोष की आशंका होने पर, ज्योतिषीय समाधान के लिए आप मुझ से फोन अथवा व्हाट्सएप द्वारा संपर्क कर सकते हैं। Call – WhatsApp